पश्चिम बंगाल में केंद्रीय फंड रोकने का विवाद: हकीकत या राजनीति?
भारत की राजनीति में पश्चिम बंगाल फंडिंग और उसके वितरण को लेकर हमेशा बहस बनी रहती है। खासकर जब केंद्र और राज्य सरकारें अलग-अलग पार्टियों की हों, तब यह बहस और भी तीखी हो जाती है। हाल ही में पश्चिम बंगाल में मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना और नेशनल हेल्थ मिशन जैसी स्कीमों के फंड को लेकर विवाद सामने आया है। राज्य सरकार का दावा है कि केंद्र सरकार ने बंगाल को जानबूझकर फंडिंग रोक दी, जबकि केंद्र का कहना है कि राज्य में भ्रष्टाचार के कारण यह कदम उठाना पड़ा।
बंगाल सरकार का आरोप: भेदभाव और फंड रोकना
पश्चिम बंगाल सरकार का आरोप है कि केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-22, 2022-23 और 2023-24 में बंगाल के हक का पैसा नहीं दिया। खासकर मनरेगा योजना के तहत मजदूरों की मजदूरी का भुगतान रोका गया और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गरीबों के लिए बनाए जाने वाले घरों की फंडिंग रोक दी गई। रिपोर्ट्स के मुताबिक:
- 59 लाख मनरेगा मजदूरों की मजदूरी बकाया है।
- 13,16,000 पात्र परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिला।
- 8140 करोड़ रुपये पीएम आवास योजना के तहत लंबित हैं।
- 800 करोड़ रुपये स्वास्थ्य मिशन के लिए भी जारी नहीं किए गए।
राज्य सरकार का कहना है कि उसने सभी रिपोर्ट्स और ऑडिट समय पर जमा कर दिए हैं, फिर भी केंद्र सरकार ने पैसे नहीं दिए।
केंद्र सरकार का पक्ष: भ्रष्टाचार के कारण रोक
दूसरी ओर, केंद्र सरकार का दावा है कि पश्चिम बंगाल में सरकारी योजनाओं में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। खासकर मनरेगा और प्रधानमंत्री आवास योजना में गड़बड़ियों की शिकायतें मिली थीं। केंद्र सरकार ने जांच कराई, जिसमें पाया गया कि कई मजदूरों के नाम पर फर्जी भुगतान हुए और कई पात्र लाभार्थियों को घर देने की बजाय पार्टी कार्यकर्ताओं को फायदा पहुंचाया गया।
“हम किसी भी गरीब का हक नहीं मार रहे, लेकिन जहां भ्रष्टाचार होगा, वहां पैसा रोकना जरूरी है।”
सरकार का यह भी कहना है कि राज्य सरकार को गड़बड़ियों को सुधारने का मौका दिया गया, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ, तब फंड रोकने का फैसला किया गया।
बंगाल के नेताओं का संघर्ष और धरना
पश्चिम बंगाल के नेता इस मुद्दे को लेकर दिल्ली तक पहुंचे। उन्होंने संसद में आवाज उठाई, धरने पर बैठे, लेकिन केंद्र सरकार ने कोई राहत नहीं दी। तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसदों और मंत्रियों को दिल्ली में हिरासत में भी लिया गया। बंगाल के नेता आरोप लगा रहे हैं कि यह राजनीतिक साजिश है ताकि राज्य की जनता को परेशान किया जाए और केंद्र सरकार को फायदा मिले।
फंड रोकने से जनता पर असर
भले ही यह विवाद राजनीतिक हो, लेकिन इसका सबसे बड़ा नुकसान आम जनता को हो रहा है:
- मनरेगा मजदूरों को समय पर मजदूरी नहीं मिल रही, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो रही है।
- आवास योजना के लाभार्थी बिना घर के रह रहे हैं।
- स्वास्थ्य मिशन के तहत अस्पतालों और हेल्थ सेंटर्स को जरूरी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं।
सरकारों की आपसी लड़ाई के बीच जनता को ही परेशानी उठानी पड़ रही है।
क्या इस विवाद का कोई समाधान है?
इस मुद्दे का समाधान तभी संभव है जब केंद्र और राज्य सरकारें आपसी सहमति से बातचीत करें। अगर राज्य सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों का सही तरीके से जवाब दे और केंद्र सरकार निष्पक्ष रूप से फंड रिलीज करे, तो समस्या हल हो सकती है।
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